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Monday 11 April 2016

'आईपीएल की तर्ज पर काम कर रहे हैं केरल के मंदिर'

'आईपीएल की तर्ज पर काम कर रहे हैं केरल के मंदिर'

दक्षिणी राज्य केरल का मंदिर अपनी आतिशबाजी के लिए ही मशहूर था। मगर रविवार को पुत्तिंगल देवी मंदिर हादसे में सौ से ज़्यादा दुखद मौतों ने इसे दुनियाभर में आतिशबाजी के बुरे नमूने के तौर पर चर्चित कर दिया है। कोल्लम के सांसद एन के प्रेमचंद्रन कहते हैं, ''इस मंदिर को किसी दूसरे मंदिर की तरह एक सामान्य मंदिर के तौर पर ही लिया जाता है।

आप इसकी मशहूर गुरुवयूर मंदिर से तुलना नहीं कर सकते और इस तरह के किसी अन्य मंदिर से भी नहीं। देवी को खुश करने के लिए वे आतिशबाजी करते हैं।'' इस मंदिर की जो विशेषता लोकप्रिय हुई है वह है यहां की 'आतिशबाजी प्रतियोगिता' जो हर साल इन महीनों में मंदिर महोत्सव के बाद होती है। इस तरह इसे ''मीनाम भारानी महोत्सव'' नाम मिला। प्रतियोगिता में दो टीमें भाग लेती हैं, जो मंदिर महोत्सव में शामिल होने वालों को अपने हुनर से ताज्जुब में डालने को तैयार रहती हैं। इस प्रतियोगिता में अलग-अलग की आतिशबाजी होती है।

ये ऐसी प्रतियोगिता थी, जिस पर जिला प्रशासन ने पुत्तिंगल देवी मंदिर में रोक लगा रखी थी। मंदिर में 10-15 साल पहले भी ऐसी दुर्घटना हो चुकी थी, जिसमें कम लोग घायल हुए थे। मगर मंदिर कमेटी ने प्रतियोगिता को जारी रखा। इसका बड़ा कारण यहां पटाखों का बड़ी मात्रा में एकत्र होना भी रहा। ऐसा कई बार हुआ था जब ये निर्धारित मात्रा से बहुत अधिक थे।सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक राहुल इश्वर ने बीबीसी को बताया, ''केरल के मंदिरों में जो हो रहा है, वह इंडियन प्रीमियर लीग और टी20 प्रतियोगिता में जो हो रहा है वैसा ही है। मंदिर कॉर्निवाल की जगह लेने लगे हैं। ऐसी आतिशबाजी और प्रतियोगिता के लिए कोई वैदिक नियम नहीं है।''

इसे साबित करने के लिए राहुल कहते हैं, ''केरल में आठ से नौ हजार मंदिर हैं, जिनमें से ढाई हजार पर सरकार का नियंत्रिण है। हर कोई मनोरंजन पसंद करता है। इसलिए भक्तों को आकर्षित करने के लिए आपको कुछ करना पड़ता है। आतिशबाजी इसमें एक है। कुछ मंदिर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की आड़ में सिनेमा का नाच भी करवाते हैं।''

राहुल कहते हैं, ''यह गंभीर मुद्दा है। यहां न गीता के उपदेश हैं, न धार्मिक मूलग्रंथ और न योग आधारित शिक्षा है। कुछ कल्याणकारी गतिविधियां होनी चाहिए, नहीं तो आपके भक्त आपको छोड़ देंगे।'' सबरीमाला मंदिर से जुड़े राहुल कहते हैं कि पांच दशक पहले एक दुर्घटना में 68 लोगों की मौत के बाद उस मंदिर में आतिशबाजी बंद कर दी गई थी।

लेकिन राहुल की बात नकारते हुए त्रावणकोर देवासम बोर्ड अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन के मुताबिक, ''हम लोग इस रिवाज को बंद करने को तैयार नहीं। हम लोग कोई प्रतियोगिता नहीं करेंगे, लेकिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह प्रथा चलती रहेगी।

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